सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेता अभिषेक बनर्जी और उनकी पत्नी रुजिरा बनर्जी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने पश्चिम बंगाल स्कूल जॉब घोटाले में मनी लॉन्ड्रिंग जांच से संबंधित प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के समन को चुनौती दी थी। दंपति ने तर्क दिया कि उन्हें नई दिल्ली के बजाय कोलकाता बुलाया जाना चाहिए। जस्टिस बेला त्रिवेदी और सतीश चंद्र शर्मा ने आज यह फैसला सुनाया, जो 13 अगस्त को फैसला सुरक्षित रखने के बाद सुनाया गया।
याचिकाकर्ताओं ने क्या तर्क दिया?
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा जारी किए गए समन को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 के अनुसार नियंत्रित किया जाना चाहिए, क्योंकि 2002 के धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में समन के लिए कोई विशिष्ट प्रक्रिया नहीं दी गई है। उन्होंने तर्क दिया कि सीआरपीसी के तहत, उन्हें नई दिल्ली के बजाय केवल कोलकाता में पेश होना चाहिए, जहां कथित अपराध हुआ था।
ईडी का प्रतिवाद
हालांकि, ईडी ने यह कहते हुए जवाब दिया कि पीएमएलए की धारा 50 सीआरपीसी की धारा 160 से अलग है, और तर्क दिया कि पीएमएलए प्रावधानों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। ईडी ने कहा कि पीएमएलए के तहत जांच के लिए व्यक्तियों को बुलाने का अधिकार व्यापक है और सीआरपीसी की प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं तक सीमित नहीं है, जिससे नई दिल्ली में समन भेजना उचित है। सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों पर विचार करते हुए, चल रही जांच में पीएमएलए के अद्वितीय कानूनी ढांचे पर जोर देते हुए समन को स्थानांतरित नहीं करने का फैसला किया।
अभिषेक बनर्जी के खिलाफ मामले
तृणमूल कांग्रेस के प्रमुख नेता और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी कई हाई-प्रोफाइल मामलों में ईडी की जांच के घेरे में हैं। इनमें पश्चिम बंगाल के स्कूलों में भर्ती में अनियमितताओं और आसनसोल के पास कुनुस्तोरिया और कजोरा में ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की खदानों से जुड़े करोड़ों रुपये के कोयला चोरी घोटाले के आरोप शामिल हैं।