मलयालम सिनेमा के दिग्गज पार्श्व गायक पी जयचंद्रन का गुरुवार को 80 साल की उम्र में निधन हो गया। जयचंद्रन पिछले साल से लिवर संबंधी समस्याओं से पीड़ित थे और उनका इलाज चल रहा था। उन्होंने त्रिशूर के अमला अस्पताल में आखिरी सांस ली। रिपोर्ट्स के मुताबिक, राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता गायक गुरुवार शाम 7 बजे पुकुन्नम स्थित अपने घर पर अचानक गिर पड़े। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।
प्रारंभिक जीवन
पी जयचंद्रन का जन्म 3 मार्च 1944 को केरल के एर्नाकुलम जिले के रविपुरम में हुआ था। बाद में उनका परिवार इरिंजलाकुडा चला गया। जयचंद्रन को संगीत सीखने की प्रेरणा अपने बड़े भाई सुधाकर से मिली जो प्रसिद्ध गायक येसुदास के करीबी दोस्त थे।
कुंजलि मराक्कर के साथ डेब्यू
जयचंद्रन ने अपने पार्श्व गायन की शुरुआत 1965 में फिल्म ‘कुंजलि मराक्कर’ के गीत ‘ओरु मुल्लाप्पुमलामय’ से की। यह गीत पी भास्करन द्वारा लिखा गया था और चिदंबरनाथ द्वारा संगीतबद्ध किया गया था। इसके बाद, निर्देशक ए विंसेंट ने मद्रास में एक संगीत कार्यक्रम में जयचंद्रन का गायन सुना और संगीत निर्देशक जी देवराजन से उनकी सिफारिश की। 1967 में, फिल्म ‘कालिथोजन’ का गाना ‘मंजलायिल मुंगी तोर्थी’ जयचंद्रन के करियर में एक मील का पत्थर बन गया।
पांच दशक का करियर
पी जयचंद्रन का पांच दशक का शानदार करियर रहा. मलयालम संगीत जगत में 1,000 से अधिक यादगार गानों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। उनकी सुरीली आवाज ने फिल्मी गानों, सुगम संगीत और भक्ति गीतों के जरिए संगीत प्रेमियों के दिलों में खास जगह बनाई। उन्होंने 1985 में “शिवसंकर सर्व सरन्या विभो” गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता।
एक युग का अंत!
उन्होंने 1985 में “शिवसंकर सर्व सरन्या विभो” गीत के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता। दिवंगत गायक ने अपने करियर में सैकड़ों यादगार गाने दिए हैं जो मलयालम संगीत प्रेमियों की विरासत बन गए। उनकी आवाज़ और संगीत के प्रति उनका समर्पण अद्भुत था. उनका निधन मलयालम संगीत जगत के लिए एक युग का अंत है। मलयालम संगीत जगत में शोक की लहर है.
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